Saturday, July 30, 2011

प्राकृतिक कीटनाशी - बिन्दुआ बुग्ड़ा

बिन्दुआ बुग्ड़ा एक मांसाहारी कीट है जो अपना गुजर-बसर दुसरे कीटों का खून चूस कर करता है। कांग्रेस घास पर यह कीट दुसरे कीटों की तलाश में ही आया है। कांग्रेस घास के पौधों पर इसे मिलीबग, मिल्क-वीड बग़जाय्गोग्राम्मा बीटल आदि शाकाहारी कीट व इनके शिशु व अंडे मिल सकते है। इस घास पर इन्हें खून पीने के लिए इन शाकाहारी कीटों के अलावा कीटाहारी कीट भी मिल सकते है। इन सभी मध्यम आकार के कीटों का खून चूस कर ही बिन्दुआ बुग्ड़ा व इसके बच्चों का कांग्रेस घास पर गुज़ारा हो पाता है।
स्टिंक बग़ की श्रेणी में शामिल इस बिन्दुआ बुगडा को अंग्रेज "two spotted bug" कहते हैं। कीट वैज्ञानिक इसे द्विपदी प्रणाली के मुताबिक "Perillus bioculatus" कहते हैं। इस बुग्ड़े के परिवार का नाम "Pentatomidae" है तथा वंश-क्रम "Hemiptera" है.
बिन्दुवा बुग्ड़े का निम्फ

अंडे 
इन बिन्दुआ बुग्ड़ों का शरीर चौड़ा व शिल्ड्नुमा होता है। इनकी पीठ पर ध्यान से देखे तो अंग्रेजी का वाई अक्षर भी नज़र आ जाता है. इनके प्रौढ़ों के शरीर की लम्बाई 10 से 12 मिमी तक होती है। इनके निम्फ 8 से 9 मिमी लंबे होते है. निम्फों के शरीर का रंग पीला-पीला या लालिया संतरी होता है. इस बुग्ड़े की प्रौढ़ मादा मधुर मिलन के बाद प्राय: दो दर्जन अंडें पत्तियों के उपरली सतह या टहनियों पर देते हैं. इन अण्डों को वे दो पंक्तियों में एक-दुसरे से सटा कर रखते हैं. इन अण्डों से छ:-सात दिन में निम्फ निकलते है. अंडे से प्रौढ़ विकसित होने में तक़रीबन 25 -30 दिन का समय लगता है.
बिन्दुवा बुग्ड़े के अंडे से निकला- बंगिरा
इंसानों द्वारा छेड़े जाने पर ये बिन्दुआ बुग्ड़े बेचैन करने वाली तीक्ष्ण गंध छोड़ते हैं। इस गंध रूपी हथियार को ये कीट दुसरे कीटों से अपना बचाव करने में भी इस्तेमाल करते हैं। आलू की फसल को नुकशान पहुचने वाली कोलोराडो बीटल के तो ग्राहक होते है ये बिन्दुआ बुग्ड़े। इस बुग्ड़े के नवजात पहली कांजली उतारने तक तो पौधों का जूस पीकर गुजारा करते हैं. इसके बाद तो ताउम्र मांसाहारी रहते हैं. कीट वैज्ञानिक बताते हैं कि ये निम्फ प्रौढ़ विकसित होने तक तक़रीबन इस बीटल के 300 अंडे, 4 लार्वे व् 5 प्रौढ़ डकार जाते हैं. प्रौढ़ जीवन जीने के लिए प्रतिदिन दो के लगभग बीटल के लार्वा तो मिलने ही चाहियें. इसी जानकारी का फायदा उठाकर कीटनाशी उद्योग द्वारा इन बुग्ड़ों को भी जैविक-नियंत्रण के नाम पर बेचा जाने लगा है। साधारण से साधारण जानकारी को भी मुनाफे में तब्दील करना कोई इनसे सीखे। साधारण ज्ञान को विज्ञानं बनाकर तथा फिर इसे तकनिकी बताकर ये कीटनाशी उद्योग किसानों को तो बेवकूफ बना सकते है पर प्रकृति को नही. जिला जींद के निडानी गावं की खेत पाठशाला के किसानों संदीप व् राजेश तथा खेती विरासत मिशन, जैतों(पंजाब) के गुरप्रीत, अमनजोत, बलविन्द्र व् अमरप्रीत ने कीट-कमांडो रणबीर मलिक व् कप्तान के नेतृत्त्व में कांग्रेस घास पर मेक्सिकन बीटल के गर्ब का खून चूसते हुए इस बुग्ड़े के निम्फ को मौके पर देखा व् फोटो खीचा. इन्होने इस बुग्ड़े के प्रौढ़ एवं निम्फ की मेक्सिकन बीटल के बच्चे का परभक्षण करते हुए विडिओ तैयार की. इसी गावं के खेतो में रजबाहे के किनारे खड़े कांग्रेस घास के पत्तों पर कीट-कमांडो रणबीर मलिक ने इस बिन्दुवा बुग्ड़े के अण्डों से एक परजीव्याभ निकलते देख लिया. यहाँ के किसानों ने मिलीबग के परजीव्याभों अंगीरा, जंगिरा व् फंगिरा की तर्ज़ पर बंगिरा नाम दिया है.
किसी ने सच ही कहा है, "जी का जी बैरी". कांग्रेस घास को उपभोग करती है मेक्सिकन बीटल और उसके बच्चे. बिन्दुआ बुग्ड़े मेक्सिकन बीटल और उसके बच्चे को खा-पीकर गुजारा करते है. बंगिरा अपने बच्चे इन बिन्दुआ बुग्ड़ों के अण्डों में पालता है.
काश! हरियाणा के सभी किसान इस प्राकृतिक कीटनाशी को पहचानते होते तो वे भी रणबीर, मनबीर व् इनके साथियों की तरह कीटनाशी मुक्त खेती कर रहे होते.

Wednesday, July 27, 2011

सड़ांधला हरिया:- कपास में एक बुग्ड़ा!



सड़ांधला हरिया कपास के खेत में अक्सर दिखाई दे जाने वाला एक पौधाहरी बुग्ड़ा है जो पौधों का जीवन-रस पीकर अपना गुजारा करता है व् अपनी वंश-बेल चलाने के प्रयास करता है. इस चक्कर में कपास की फसल को थोडा-बहुत नुकशान भी हो जाये तो, इसे कोंई परवाह भी नही. पर हरियाणा में कपास की फसल में इस कीट ने कभी कोंई नुकशान पहुचाया हो, ऐसी कोंई भी ऍफ़.आई.आर. किसी कीट- वैज्ञानिक ने दर्ज नही करवाई. और तो और इस सड़ांधले बुग्ड़े की गिनती तो कपास के नामलेवा हानिकारक कीटों में भी नही होती. वास्तव में तो यह सड़ांधला हरिया मक्का, सोयाबीन व् कपास समेत किसी भी पौधे का रस चूस कर गुज़ारा कर लेता है. ये बुग्ड़े तना, पत्ते, फुल, फल व् बीज समेत पौधे के किसी भी भाग से रस चूस लेता है. सड़ांधले बुग्ड़े इस काम को अपने नुकीले डंक के कारण ही कर पाते हैं.
कीट वैज्ञानिक इस सड़ांधले बुग्ड़े को नामकरण की द्विपदी प्रणाली के मुताबिक  Acrosternum hilare कहते हैं. इसके परिवार का नाम Pentatomidae व् वंशक्रम का नाम Hemiptera.        
इस बुग्ड़े के प्रौढ़ एवं निम्फ, दोनों ही इनके साथ छेड़खानी होने पर अपने शारीर से दुर्गन्धयुक्त तरल निकालते हैं. शायद इसीलिए इन्हें सड़ांधले बुग्ड़े कहा जाता है. 
अंडे से प्रौढ़ के रूप में विकसित होने के लिए सड़ांधले बुग्ड़े को 30 से 35 दिन का समय लग जाता है. इनका प्रौढीय जीवन 60 दिन के लगभग होता है.
कपास की फसल में इस कीट का भक्षण करते हुए भान्त-भान्त के पक्षियों व् मकड़ियों को जिला जींद के रूपगढ, ईगराह, निडाना, निडानी, ललित खेडा व् भैरों खेडा के किसानों ने अपनी आँखों से देखा है. इन किसानों ने तो इस सड़ांधले बुग्ड़े के अण्डों में अपने बच्चे पलवाते एक महीन सम्भीरका को भी देख लिया.